मैथिली किस्सा – गोनू झाकेँ बेर-बेर चोरक चक्कर लागल रहैत छलनि। मुदा हुनका तकर डर रंचमात्रो नहि होइत छलनि। एहिना एक बेर ओ पंडिताइनक संगे घरमे पड़ल-पड़ल सुतबाक उपक्रम क रहल छलाह। राती निसभेर भ गेलनि तैयो ओ गप्पे क रहल छलाह। मुदा चोरबा सभ हुनका सुति रहल रहबाक भ्रममे सेन्ह मारि घरमे प्रवेश क गेल। घरक भीतर अबैत ओ सभ देखलक जे ई त जगले छथि। मोन मसोसिक रहि गेल। जा धरि ई जागल रहताह, चोरि करब संभव नहि बुझि ओ सभ धरनि पर चढि हुनका सुतबाक प्रतिक्षा कर लागल।
गोनू झाकेँ पाहून सभकेँ आबि जयबाक भनक लागि गेल छलनि। ओ एकरा सभसँ मुक्त्त होयबाक व्योंत सोच लगलाह। किछु नहि फुरलनि तं पंडिताइनकेँ कहलथिन एकटा एकदम चोटगर बात – सुनै छी?? पंडिताइन कहलखिन – ऊँ। गोनू झा कहलखिन – हमरा एकटा पंडित हाथ देखि कहलक अछि जे अहाँकेँ चारिटा बेटा होयत।
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पंडिताइन कहलखिन – “दुर जाउ।” गोनू झा कहलखिन – “लाज भ गेल?” पंडिताइन कहलखिन – “लाज किए होयत। मुदा जेहन अहाँ अपने छी, तेहने अहाँक पंडित अछि।” पंडिताइन के बात सुनि गोनू झा कहलखिन – से किए? हमरा बेटा नै होयत? पंडिताइन दोसर करोट दिस घुमैत कहलखिन – “जाउ, हमरा सूत दिअ। दुपहर राति भेलै आ अहाँ अखनो धरि अदखोइ-बदखोइ मे लागल छी।”
मुदा गोनू झा एकसरे बजैत रहलाह, कहलथिन- हम अपन होव वला चारू बेटाक नामकरणो क लेलहूँ अछि। पंडिताइन गोनू झाक बात पर भीतरे-भीतरे प्रसन्नो होइत छलीह। हिनक वाक्य, पर किछु बजलीह त नहि, मुदा पुछबाक मुद्रामे हुनका दिस नजरि उठौलनि के देखलैथ। गोनू झा आगू कहलखिन – हँ, त सुनू। गोनू झा पलथा मारिक बैसैत बजलाह – जेठकाक नाम राखब लूटन, दोसरक भूखन, तेसरक छोटन आ चारिमक चोर।
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पंडिताइन हुनकर बात सुनि के कहलखिन – “मर्र, चोर कतौ नाम भेलैए हन।” गोनू झा कहलखिन – नइं भेलैए, तेँ ने हम रखबै। आखिर बेटा ककर हेतै? पंडिताइन कहलखिन – “हँ, त एहन मूहँपुरुख दोसर क्यो छै मिथिलामे।” गोनू झा खुश होइत कहलखिन – त ताहुमे अहाँकेँ भ्रम बुझाइए। पंडिताइन कहलखिन – जाउ, जे मोन होअय, राखू। किदन कहलकै जे पानीमे मछरी, नओ-नओ कुट्टी क बखरा। आ ई करोट फेरि लेलनि। मुदा एखनो गोनू झाक गप्पक मोटरीक सठल नहि छलनि। पंडिताइनकेँ गट्टा पकडैत अपना दिस करैत कहलथिन – पांच बापुत रहब। जखन कोनों प्रयोजन पड़त आ ओ सभ लगमे नहि रहत त एतेँ स गद्दह करबै… लूटन, भूखन, छोटन, चोर हौ!!
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पंडिताइनकेँ एहि असमयक गोनू-लीला पर हँसी लागि गेलनि। मुदा गोनू झा रओ थम्हिये नहि रहल छलाह। लगातार चिकरि-चिकरि बकने जा रहल छलाह। कि तखने पड़ोसी सभ लट्ठ ल ल क हुनक घरक मुँहथरि पर पहूँचि गेलनि आ केबाड़ पीट लगलनि। गोनू चट्ट चौकी परसं फानि केबाड़ लग पहूँचि छिटकिल्ली खोलि देलनि। समवेत स्वरमे प्रशन छुटल – कत हो?
गोनू झा कहलखिन – “हे वैह, धरनि पर हो!”, गोनू झा इशारा करैत कहलथिन। आ बड़ सुभिस्तासं सभ चोर पकड़ा गेल तथा लट्ठधारी सभक प्रतापे ओकरा सभक नह-नह थुरि देल गेलै। आहां के एत ई बुझि लेबाक थिक जे लूटन झा, भूखन चौधरी आ छोटन कामति हुनक पड़ोसी सभक नाम रहनि छल। गोनू झा के इ चालाकी के सब तारीफ केलक।
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