मैथिली किस्सा : एक बेरक गप्प छै। गोनू झाक प्रतीक्षा करैत-करैत पंडिताइनक आंखि पाथर भ गेलनि आ ओहि पाथर भेल आंखिमें निन्द आब लग्लनि| पंडिताइन सोचैत रहलीह जे दुपहर राति भेलै मुदा आइ एखन धरि कतस छथि से नहि जानि। कहकि गेल छलाह जे आइ कोनो काज नहि अछि, तुरंन्त घुरि आयब| मुदा ओ तुंरत पहाड़ भ गेलनि।
हारि-थाकि पंडिताइन भोजन क लेलनि आ हुनकर भोजन काढि आ तकरा ढाकी सं झापिं चौकी तरमे ध कल्याण करौट देलनि। निसभेर निन्नमे केबाड़ ढकढकयाबक आवाज भेलनि। पंडिताइन कुमोने उठलौह आ छिटकिल्ली खोललनि, त देखैत छति जे गोनू झा छति।
आंखि कड़जन्नी सन-सन झुमैत हिनकर तामस सातम अकास पर ठेकि गेलनि – ‘जाउ, आब किए अयलौं। एकेबेर भोरे मे अबितौं। भांग पीलाक बाद आहाँ कें त होस नै रहैय। जनै छिऐ, कते बजैत हेतै?
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गोनू झा कें पत्नीक प्रवचन नीक नहि लगलनि। भांग अपन मस्तीमे छले, मति गेलाह तामसमे। मुदा ततक्षणे किछु सोचि तमासकें घोंटि गेलाह आ चौकी पर आबि उठा देलनि पराठी – जुनी करू राग विरोग हे जननी, जुनी करू राम विरोग…।
एहि गति पंडिताइन आर प्रज्वलित भ उठलीह – एक त चोरीं ताइ पर सं सीनाजोड़ी। हम अभागल जे आहाँ कें प्रतीक्षा करैत-करैत आजिज भेल छी आ आहाँ ऐ निसभेर रातिमे पराती गबैत छी। जानि नहि विधाता केहन हाथे हमरा सोंपि देलनि…।
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गोनू झाक धैर्य आब जबाब द देलनि। ओ फुटि पड़लाह – “गय अलच्छी तों हमरा कहबें? हम तोहर बहिया? तोहर खबास? हम तोरा मोने चलब? तोहर गुलाम भ क रहब?” आ कहैत लगलाह पंडिताइन के डेन्गब।
पंडिताइन हिनकोसं कम नहि। जतबा जोर सं चोट नहि लगैत छलनि, ताहिसँ चौ-गुणा जोरसं बपहारि काटब शुरू क देलनि। आ से ई तेहन लीला कयलनि जे पूरा गाम गोनू झाक आंगनमे उनटि गेल। सभ हिनकर बन्न भेल केबाड़कें पीटा लागल जखन बड़ी काल धरि पिटैत रहलाह त आखिरमे गोनू झा छिटकिल्ली अलगौलनि। सभक एकेटा प्रशन – एना किए? आ ताहि प्रशन पर पुनः दुनु गोटेमे उत्तराचौरी अर्थात् गलती इ कयलनि, नहि गलती हिनकर छियनि। आ एहिना बड़ी काल धरि चलैत रहल।
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अन्तमे गोनुकें नहि रहल गेलनि। ओ गौआँ सभ दिस पलटलाह आ कहब आरम्भ कयलनि – “सुनु औ गौआँ-घरुआ सभ! हमरा जनैत गलती हिनकर छियनी मुदा हिनकर कहब छनि जे गलती हमर छी। आ तेहना सिथतिमे ई झगडा नहि फरिछा सकैए। तें हमर कहब जे हम दुनु गोटे तं बादी-प्रतिबादी भेलौं तें हमरा दुनु गोटाके स्वयं एकरा फरिछा लेब दि दोसर, संय-बहुक झगडा, पुच भेल लबडा।- “नै, से नै भ सकैए।” आइ हमरा ऐ झगड़ाक पंचैती क दै जाथु।
पंडिताइन ओही रोद्र-रूप मे अडैत बजलीह।-“त ठीक छै। गोनू बजलाह- ‘पंचौती भैये जाय। अस्तु। हम कहब जे हमरा दुनूक झगड़ाक कि कारण अछि से त आहाँ सभ नहि देखलौं। तें नीक होयत जे जे व्यक्ति सभ एहि झगड़ाक प्रत्यक्षदर्शी थिकाह वैह पंच होथि।- “मुदा…….??? ” गौआंके सम्मिलित
शंका भेलनि।- “नहि गोनू बजलाह- “देखू बड़ी कालसँ ऐ जाड़मे ठिठुरैत पांच टा पंच कोठीक पाछू मे
बैसल सब घटनाकें देखि रहल छथि। तें हुनके बहार बजा पुछि लेल जाय…।”
एतबा कहबाक रहनि कि सभ कोठी पाछू हुलल। ओत देखैत छथि जे परोपट्टाक पाँच टा नामी चोर सशंकित भावे ठाढ़ अछि। फेर कि छल मौसमे बदलि गेल। गोनू झाक लीलापर सभ क्यो दंग रही गेलाह। तखने गोनू झा पत्नीसं पुछ्लनि – “बेसी चोट त नै लागल?” एम्हर ता चोरक इलाज भ गेल। पंडिताइन लजाइत घरसं बहरा गेलीह।
गोनू झा के किस्से: गोनू झाक पंचैती
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