मैथिली किस्सा – गोनू झा रहथि सतर्क आ बुद्धिमान लोक छलाह। अपन बुद्धिमत्ता आ विद्वताक बल पर ओ सदैव मिथिलाक राजदरवार में आदर पाबथि आ यदा-कदा इनाम सेहो। एक बेर गोनू झा बांगक खेती नीक जकाँ कयने रहथि। उपजा सेहो नीक भेलनि। ओकरा बेचि नीक पाइ सेहो अर्जित कयलनि। मुदा हुनका चिन्ता छलनि जे बांग तं बिका गेल मुदा बंगौर (बाँगक बिया) के क्यो पुछनिहार नहि। ओ एही व्यथें मुइल जाइत छलाह जे हाटमे एकरा पुछनिहार नहि। ओ एही व्यथें मुइल जाइत छलाह जे हाटमे एकरा पुछनिहार केओ कियक नहि अछि।
एही क्रममे एक दिन रातिक बहुत बिलम्ब सं ओ घर घुरलाह त आभास भेलनि जे चोर आँगनक कोंटा सभ पकड़ने अछि। पहिने गोनुके अपन घरमे राखल बांगक रुपैयाक चिन्ता भेलनि – भ सकैछ, होने हो चोरबा सभ एही रुपैयाक गंध पाबि एम्हर टघरल अछि। मुदा तुरत हुनका दिमाग मे किछु कंपन भेलनि। आ निसभेर सुतलि अपन पत्निकें जगबगैत डाँटब आरम्भ क देलनि जे अहाँ सभ दिन एके रंगक रहि गेलहूँ। देखू त एतेक दामी बंगैरकें अहाँ आंगनमे छोड़ने छी, पत्नी बजलाह – “ओकरो कोनो मोल छै? हम त ओकरा गिद्दरकें खयबाक लेल छोड़ने छी।”
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गोनू झा कहलखिन – “राम-राम ई की कहैत छी।” गोनू झा कहलखिन – अहाँकें बुझल अछि जे हम एकटा वैध-सम्मलेनसं आबि रहल छी। ओतुक्का वैध लोकनि कहलथिन अछि जे बंगैरसं कुष्ट रोग छुटैत छैक। तुरत एकर भाव सय टके सेर भ रहल अछि। एहिना बड़ीकाल धरि दुनु गोटमे वाकयुद्ध चलैत रहलनि। गोनू झा एहि युद्घ द्वारा बातकें नीक जकाँ फड़ीच्छ क देलनि जे बंगौर सन दामी बस्तुकें आँगनमे छोड़ीक हुनक पत्नी बड़ पैघ गलती कयलनि अछि आ तकर निदान तखनहि संभव जे शुभक ई राति कहुना बीति जाय।
थोड़क कालक बाद गोनू झाकें निन्न आबि गेलनि। ओ फोंप काट लगलाह। पत्नियों सुति रहलथिन। आ तखने नुकायल चोर सभ बंगौर ल क पार भ जाइत गेल। भिनसरे गोनू झाकें उक्त् चोरीक पता चललनि तं बजलाह – कोनो बात नहि। ल जाय दिऔक। बंगौर ने ल गेल हमर भाग्य थोड़े ल गेल अछि। सत्तक होयत तं बंगौर सुदि समेत घुरि आओत।
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हुनक पत्नी अपराध – बोधसं लदल अपन काजमे लागि गेलीह। हुनका एहि चोरिक बड़ दुःख रहिन, मुदा आब त तकर कोनहु उपाय नहि रहिन। गोनू झा बेरुपहर जखन हाट पहुँचलाह त देखैत छथि जे चोरबा सभ बंगौरक बोरा सभ गेटने ओत उपस्थित अछि। संगमे चाउरक बोरा सभ सेहो राखल छैक। ओ ओहि दोकान लग अयलाह। चाउर दनादन बिकयाल जा रहल छल मुदा बंगौरक केओ पुछनिहार नहि छल। गोनू झा गन्हिकि नजरिसं बंगौराकें देखलथिन आ ओकर दाम पुछलथिन।
चोरबामेसं एक गोटे बाजल – “सय टके सेर छै वैध जी!” गोनू झा कहलखिन – अरे रतुका भाव छोड़ह, दिनुका भाव कहह। गोनू झा अपन कुटिल हंसीकें दबबैत कहलथिन। एतवा कहबाक छलैक की चोरवा सभक माथा ठनकल। अरे, ई त वैयह छथि जिनका ओत रातिमे चोरि कयल अछि। ओ सभ, किछुकें छोड़ी-छाडी अपन अपन जान ल क पड़ायल। एकबेर फेर चोर सभ कें छकेबा मे गोनू सफल भेलाह।
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गोनू झा सभसँ पहिने ओकर बगुलिकें अपन अधीन कयलनि आ गाड़ी बरद कसबाय, तोहि पर बंगौरक संग बांचल चाउरक पट्टा सभ लदबाय ओकरा अपन घर दिस विदा कयलनि। बाटमे भेटलनि एकटा मलाह, जे हाट आबैत छल। तुरत ओकर सभ माछ कीनी, पाइ चुकता क पंडिताइनक स्मरण करैत निछोहे घरमुहाँ भ गेलाह।
गोनू झा के किस्से: गोनू झा के बंगौर के चोरी
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