Tuesday, May 21, 2024

मैथिली किस्सा – ‘अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा’

मैथिली किस्सा: एक समयक बात अछि, कोशी नदीके किनारे एगो गुरु अपन चेला के संग कुटिया बना के रहय छैलैथ। एक दिन गुरु आ चेला दुनु गोटे तीर्थयात्रा पर निकललाह। बहुत दूर चलला पर दुनू गोटे एगो अनजान नगर में पहुँचलाह।

andher nagari chaupat raja

मैथिली किस्सा: एक समयक बात अछि, कोशी नदीके किनारे एगो गुरु अपन चेला चिंतामणि के संग कुटिया बना के रहय छैलैथ। एक दिन गुरु आ चेला दुनु गोटे तीर्थयात्रा पर निकललाह। बहुत दूर चलला पर दुनू गोटे एगो अनजान नगर में पहुँचलाह।

नगर पहुँचला पर एगो बगीचा में खोपड़ी बना के बैसलाह। दुनु आदमी केँ भूख लागि गेल छलनि त गुरु अपन चेला चिंतामणि के एक रुपया द के कहलखिन जे बजार से कोनो बढ़िया सब्जी ल आ। चिंतामणि रुपया ल के बजार पहुँचल आ सब्जी सब के रेट पूछह लगलाह।

चिंतामणि के इ देख के बहुत आश्चर्य भेल जे बजार में प्रायः सब सामान एक टके सेर के रेट से बिकाइ छल, सब्जी, दूध, दही आर मिठाई भी सब ऐके रेट छल। चिंतामणि एगो मिठाई के दोकान पर गेलाह आ दोकानदार सँ पूछलखिन्ह जे- इ मिठाई के की रेट छै, अहाँ कतेक पाई लेब?

दोकानदार कहलकनि- हम अहाँ सँ एक रुपया सेर के हिसाब सँ मिठाईक रेट लेब। चिंतामणि सोचलथि जे ई नगरी सबसँ सस्ता छैक, अहि सँ सस्ता दोसर ठुम सामान नय मिलत। ओ ओत से ठेर रास मिठाई किन के गुरूजी के पास एला आ बजार के सब समाद कहलखिन।

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चिंतामणिजी गुरूजी सँ कहलखिन गुरूजी हम अहि नगरी मे रहब कियेकी अहिठाम सब किछ बहुत सस्ता भेटैत छैक अहि सँ सस्ता दोसर नगरी मे नञि भेटत आर भोजन सेहो बहुत स्वादिष्ट होइत अछि। चिंतामणि के बात सुनि के गुरूजी ध्यानमग्न भ के कहलखिन- चिंतामणि ई नगरी से दुनु आदमी के जते जल्दी भ सके बिदा भ जेबाक चाही। ई अंधेर नगरी ऐछ अहि ठाम के राजा महा चौपट आर मुर्ख ऐछ।

गुरुजी कहलखिन- चिंतामणि अहाँ अहिठाम नञि रहू कियेकी अहि नगरी मे भारी संकट आबय बला अछि। अहाँ केँ अपन जानक बलिदान देबय पड़त। लेकिन चिंतामणि गुरुक बात नञि मान्अलथि ओ कहलक गुरुजी अहाँ के आज्ञा होय त अहिठाम किछ दिन रैह जाऊं।

गुरुजी कहलखिन- ठीक छै किछ दिन बढ़िया भोजन खा पी क सेहत बना लिय। ई कैह के गुरूजी ओत से बिदा भ गेला। चिंतामणि केँ अहिनगरी मे बहुत सुख आर आनंद आबय छलनि। रोज भोर के नगर में भिक्षा मांगै लेल जाय छलैथ आ एक दू रुपैया जे होय छलैन ओय से खूब मिठाई खरीद के खाय छलैथ। टके सेर के भाव से खाना मिलै छल तहि सँ खा पी क बहुत मोटाक सिल भ गेलथि।

ऐ तरह समय बितलगेल भादव के महिना सेहो आबिगेल छल, कोसी नदी मे बाढ़ि सेहो आबी गेल तहि सँ कतेक गाम सेहो दहा गेल छल, ओही नगरीमे सेहो पानि आबिगेल छल। ओय नगर में एगो मंगला नाम के आदमी रहै छल, एक दिन बाढ़ि में मंगला अपन जान बचबैक खातिर अपन घर-आँगन छोड़ि के भागिगेल आ बच्चा सभ के सेहो घर में छोड़िक चलि गेल छल। ओकर घर-द्वार सभ खसि पड़ल ताहि सँ ओकर बेटाक मृत्यु भ गेल छलय।

ई बात पूरा नगर मे सोर भ गेलय जे मंगला अपन जान बचबै के खातिर अपन बेटाक बलिदान द् देलक ई बात ओही नगरी के राजा क खबर भेलनि त राजा तुरंत अपन सेनापति सँ कहलखिन जे मंगला क खोजि क ला हम ओकरा फाँसीक सजा देब ओ बहुत जुर्म केलक हन।

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सेनापति मंगलाक खोजि के राजदरवार मे पेस केलक, ओकरा सँ राजा कहलखिन रोऊ मंगला तू ई गलती किये करले? मंगला बाजल- हजूर हम त कुनू गलती नञि केलहुँ, हम त बच्चा के छोड़िये टा क भगलहुँ ई गलती त राजमिस्त्री केलक जे हमर घर के छत ठीक सँ नञि बनेलक।

राजाक हुकुम भेलनि जे जल्दी सँ जल्दी राजमिस्त्री केँ दरवार मे पेस करलए जे ओ बड गलती केलक जे कच्चा मकान बनेलक।

दोसर दिन राज मिस्त्री राजदरवार मे हाजिर भेलाह ओ राजा सँ कहलखिन हजूर गलती हम नञि केलहुँ, हम तँ छते टा बनेलहुँ, गिलेबा ख़राब त हमर हेल्फर चुनचुनमा केलक आब अहीं कहू हमर कतय गलती अछि।

राजा फेर सेनापति केँ आदेश देलखिन जे चुनचुनमा केँ जल्दी बजाक लाऊ। तेसर दिन चुनचुनमा राजदरवार मे हाजिर भेल। राजा हुनका सँ पुछलखिन जे रोऊ चुनचुनमा तू एहेंन गलती कियेक करले…?

चुनचुनमा बाजल हजूर सभटा गलती हमही नञि केलहुँ गलती तँ ओही मईटो मे छल जे ओ मईट बलुवाहा छल तैयो हम मज़बूरी मे गिलेबा बनेलहुँ कियेकी हमरा पाई के बहुत जरुरत छल। इहे हमरा सँ गलती भेल। आब हजूर हमरा अहां जे सजा दी सभ हमरा मंजूर अछि।

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राजा चुनचुनमा के फाँसी के सजा सुनेल्खिन। राजा चंडाल केँ चुनचुनमा के लेल फाँसीक फंदा तैयार करे के आदेश देलखिन चंडाल फाँसीक फंदा अपन हिसाब सँ तैयार केलक, चारिम दिन चुनचुनमा केँ फाँसी के फंदा पर चढ़ाओल गेल। फाँसीक फंदा लम्बा-चौरा छल, चुनचुनमा बहुत दुबर पातर ताहिसँ ससरिके फाँसीक फंदा सँ निचा उतरि गेल आ बगल मे जा कए ठाढ़ भ गेल।

सब कियो टकटक देखते रहि गेल। चंडाल चुनचुनमा केँ दुबारा फाँसीक फंदा पर चढ्बए लागल। मुदा राजा ओकरा मना क देलखिन।

राजा क हुकुम भेलनि जे चुनचुनमा केँ दुबारा सजा नञि हेतनि कियेकी राजदरवारक नियम होइत अछि जे एक आदमी केँ सजा एके बेर होइत छैक। ताहि दुवारे अहि फंदा पर ओकरा सजा भेटतनि जकर गरदनि अहि फंदा मे ठीक सँ बैसतैक। राजा सेनापति केँ आदेश देलखिन जे अहाँ आसपास से फंदा क हिसाब सँ कुनू आदमी पकड़ि क लाऊ जे मोट-सोट होय, हम ओकरा फाँसीक सजा देबय।

सेनापति पूरा राज मे घुमल हुनका चिंतामणिक घर पर नजर गेल, तखन चिंतामणि घर के बाहर में तेल-मालिश आ कसरत करैत छलाह। सेनापति के चिंतामणिक गरदनि फंदाक हिसाबे सही बुझेलनि। राजा केँ जे आदेश रहनि से ओ चिंतामणि सँ सुनेलखिन। राजाक आदेश सुनि कए चिंतामणि बहुत चिंतित भेलाह, ओ सोचए लगलाह की आब हम की करी चारू दिस हुनका किछ नञि सुझैत छनि। तखने हुनका गुरूजीक बात याद परलनि ओ सोचलथि जे आब हमरा अपन जानक बलिदान सँ गुरुवेजी टा बचेताह दोसर कियो नञि। चिंतामणि गुरुजीक ध्यान करए लगलाह।

बनदे बोदमयंनितयंग गुरुर शंकर रूपनं! यमासर्तोही बक्रोपि चन्द्रः सरबस्तर बन्देयेत!!
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर:! गुरुर साक्षात् परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:!!
अखंडमंडलाकारंग व्याप्त येनग चराचरम! तत्पदं दर्शितंग तस्मै श्री गुरुवे नम:!!
अज्ञान तिमरामिराधस्य ज्ञानानां शलाकय:! चक्षुरपितयेंग तस्मै श्री गुरुवे नम:!! इत्यादि।।

चिंतामणिक स्मरण केला सँ गुरूजी केँ अचानक याद अलयनि जे हमर चेला चिंतामणि काफी संकट मे फसल छथि। हुनका अहि संकट सँ उबारनाय हमर धर्म अछि। गुरूजी फेर ओही नगरी मे वापस आबि गेलाह आ चिंतामणि सँ हुनकर वार्तालाप सेहो भेलनि। गुरूजी सब बात सँ अवगत भेला के बाद चिंतामणि केँ बोल भरोस देलखिन जे अहाँ चिंता जूनि करू हम आबि गेल छी। आब हम जेना कहै छी तहिना करू।

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सेनापति चारिम दिन चिंतामणि के राज दरवार मे हाजिर केलक। राजा हुनका फाँसी के सजा सुनेलकनि। तखने गुरूजी राजा सँ अर्जी केलनि हे राजन चिंतामणि एखन नवयुवक छथि हम बृध सेहो भ गेल छी आ अहि फंदा मे हमर गरदनि ठीक सँ बैसतैक ताहि दुवारे अहाँ हमरा फाँसी के सजा दिअ। ओमहर चिंतामणि सेहो कह लागल जे नय-नय पहिले हमरा फाँसी के सजा दिअ।

चंडाल के एक तरफ गुरूजी फाँसी दै के लेल माइर करै छलैथ दोसर तरफ चिंतामणि। ई देख के राजा कहलक- “कि बात छै? फाँसी के नाम सुनि के सब बेहोश भ जाय छै आ अहाँ दुनू गोटा आपसे में माइर क रहल छी।” गुरूजी त एहि फिराक में छलैथ ओ कहलखिन हमरा फाँसी के सजा दिअ जे हम अहि फाँसी पर चढ़ि क स्वर्गलोक चलि जायब जाहिसे हमर तीनो लोक मे जय-जय कार होमए लागत। आ एखुनका मुहूर्त भी बढ़िया अछि एखन जे फाँसी पर चढ़त ओकरा अगला जनम में अहाँ के राज्य से पांच गुना नमहर राज्य मिलत।

ई बात सुनि कए राज दरवार मे जतेक लोक सभ बैसल छल सब कियो बेरा-बेरी राजा सँ अर्जी आर विनती केलथि जे हे राजन अहि फाँसी पर चढ़ि क हम स्वर्गलोक जायब, जाहिसँ हमर जय-जय कार तिनोलोक मे होयत। राजा जे छल उ एक नंबर के लालची भी छल।

ई बात सुनि क राजा अपना मोन मे विचार केलथि जे कियेक नञि हमही अहि फाँसी पर चढ़ि क स्वर्गलोक चलि जाइ जे हमर जय-जय कार तीनो लोक मे होयत। राजा झटसं अपन गद्दी सँ उतरि क फाँसी क फंदा मे जा क लटकि गेलाह आ चंडाल केँ आदेश देलखिन जे फाँसी केँ उठा दे।

सब कियो टकटक देखते रहि गेल आ राजा यमलोक चलि गेलाह। तै के बाद गुरूजी आ चिंतामणि ओत से खिसैक गेलाह। अहि दुवारे कहल गेल अछि “अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।”

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