मैथिली किस्सा : एकटा छलि कौवा आ एकटा छल फुदकी (चिड़ैया)। दुनूक बीच भजार-सखी केर संबंध। एक बेर दुर्भिक्ष पड़ल। खेनाइक अभाव एहन भेल जे दुनू गोटे अपन-अपन बच्चाकेँ खएबाक निर्णय कएलन्हि। पहिने कोआक बेर आयल। फुदकी आ कौवा दुनू मिलि कए कौआक बच्चाकेँ खा गेल।
आब फुद्दीक बेर आयल। मुदा फुद्दी सभ तँ होइते अछि धूर्त्त। ओ कहलक- “अहाँ तँ अखाद्य पदार्थ खाइत छी। हमर बच्चा अशुद्ध भए जायत। से अहाँ गंगाजीमे मुँह धोबि कए आबि जाऊ”।
कौवा उड़ैत-उड़ैत गंगाजी लग गेल आ गंगाजी के प्रार्थना केलक- “हे गंगा माय, दिए पानि, धोबि कए ठोढ़, खाइ फुद्दीक बच्चा”। गंगा माय पानिक लेल चुक्का अनबाक लेल कहलखिन्ह।
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आब चुक्का अनबाक लेल कौवा गेल तँ ओतएसँ माटि अनबाक लेल कुम्हार महाराज पठा देलखिन्ह्। खेत पर माटिक लेल कौआ गेल तँ खेत ओकरा माटि खोदबाक लेल हिरणिक सिंघ अनबाक लेल विदा कए देलकन्हि।
हिरण कहलकन्हि जे सिंहकेँ बजा कए आनू जाहिसँ ओ हमरा मारि कए अहाँकेँ हमर सिंघ द दए। आब जे कौआ गेल सिंघ लग तँ ओ सिंह कहलक- “हम भेलहुँ शक्त्तिहीन, बूढ़। गायक दूध आनू, ओकरा पीबि कए हमरामे ताकति आयत आ हम शिकार कए सकब”।
गाय लग गेल कौवा तँ गाय ओकरा घास अनबाक लेल पठा देलखिन्ह। घास कौआकेँ कहलक जे हाँसू आनि हमरा काटि लिअ।
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कौवा गेल लोहार लग, बाजल- “हे लोहार भाय, दिअ हाँसू, काटब घास, खुआयब गाय, पाबि दूध, पिआयब सिंहकेँ, ओ मारत हरिण, भेटत हरिणक सिंघ, ताहिसँ कोरब माटि, माटिसँ कुम्हार बनओताह चुक्का, भरब गंगाजल, धोब ठोर, आ खायब फुद्दीक बच्चा”।
लोहार बाजल, “हमरा लग दू टा हाँसू अछि, एकटा कारी आ एकटा लाल। जे पसिन्न परए लए लिअ”। कौआकेँ ललका हाँसू पसिन्न पड़लैक। ओ हाँसू धीपल छल, जहाँ कौवा ओकरा अपन लोलमे दबओलक, छरपटा कए मरि गेल।
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