एक बेर दुर्गेश बाबु ओफिस स थाकल अपन घर पहुंचलाह
कनिया स कहलखिंह – हे सुनय छी… एक कप चाय बनाबु ने माथ मे दर्द जकां बुझा रहल अछि…
हुनकर कनिया कोनो बात के ल क फुलल छलीह
कनिया कहलखिंह – हमरा बुते नय हैत… गर्दन मे बहुते दर्द भ रहल अछि… पिबै के अछि त अपने बना लिय…
दुर्गेश भाय – फेर नौंटकी चालु क देलियै…
कनिया – नय… हम सच कहि रहल छी…
दुर्गेश भाय – सचे… तखन इम्हर आबु हम ठीक क दय छी…
कनिया – केना करब… पहिले बताबु…
दुर्गेश भाय – किछ जादा कर नय पड़त… आहां हमर माथा जोर स दबाउ और हम आहा के गर्दन जोर स दबा दय छी… दुनो गोटे के ठीक भ जैत…
इ सुनिते धरि कनिया चुपचाप चाय बनाव चली गेलीह।
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