मैथिली किस्सा : गोनू झाक एक बेर माल-जालक हाट गेलाह तथा ओत सं नीक बरद किनने अयलाह। पैसाक किल्लति रहिन तें एकटा किनलनि। गोनू झा सोचलनि जे पाइ होयत तं जोड़ा लगा लेब। एहि वर्ष ककरो संग भजैती क लेब। यैह सभ सोचैत गोनू झा गाम दिस आबि रहल छलाह। कि तखने एक गोटे पुछलथिन- ‘गोनू बाबू कतेकमे पटल?”
– “पौन सयमे भेल।’ गोनू बाबू हुलसैत उत्तर देलथिन आ बात पर आगू बढ़ैत गेलाह। तखने एकटा जजमान सं भेट भ गेलनि। ओही वैह प्रशन क देलथिन – “पुरहित, कतेक पर टुटलै?” गोनू झा उत्तर देलथिन – “यैह, पौन सयमे।”
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एवम् क्रमे गोनू बाबूक गाम जेना-जेना लगीच भेल जानि, पुछनिहारक संख्यामे वृद्धि भेल जनि। गोनू बाबू पूर्वमे त बड़ हुलसिक उत्तर दैत जाइत छलथिन। मुदा बादमे क्रमशः एहि प्रशन पुछनिहार सभसं आजिज भ उठलाह। ककरा उत्तर देथु, ककरा नहि देथु। हुनकर बरद किनबाक जे ख़ुशी रहनि, से दुःख मे परिवर्तित होब लगलनि।
मुदा गोनू बाबू अपनाकें एहिसँ असम्प्रक्त्त रखबाक प्रयास कर लगलाह। मुदा से हो त कोना हो? यैह प्रशन बेर-बेर दिमागमे घुरिआय लगलनि। कि तखने एकटा बुद्धि फुरलनि। एम्हर एही चिन्तन- मंथनमे गाम सेहो आबि गेल रहनि। एकाएक ओ बरद्कें बाधक कातक एकटा गाछक सोइरमे देलनि आ अपन गाछक फुनगी पर जाक बैसि रहलाह। नीक जकाँ जखन बैसि रहलाह सं ओहीठामसं चीकरब शुरू कयलनि- ‘दौडै जाइ जाह हो लोक सभ……. मरलौं होsssss!!”
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चिकरबाक ई अन्तहीन सिलसिला तखन ख़तम भेलनि जखन हुनका ई बुझा गेलनि जे गामक प्रायः सभ लोक जुमि गेलाह अछि। गोनू झा गरकें साफ़ करैत नीचाँ उतरय लगलाह। प्रशन पुछनिहारक संख्या बढ़ैत गेल – कि भेल ? किए चिकरै छलौं। कोना गाछ पर चढ़लौं आदि-आदि।
गोनू बाबू ताधरि मौन छलाह। नीचा आबि कने आस्वस्त भेलाह तथा सहटिक बरद लग अयलाह। तदुपरांत ओ कनेक खखसलाह आ बाजि उठलाह – “सुनि लिय! आब हम फेर नहि बाजब। हम उत्तर दैत-दैत थाकि गेल छी। तें सोचल जे समिलाते बजा, स्पष्ट क देल जाय। हम एहिसँ बड़ व्यथित छी….।
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– आखिर की बात छै गोनू बाबू?? ” सम्मिलित प्रशन छुटलनि।
– “बात किछु नहि अछि” गोनू बाबू स्पष्ट करैत कहलथिन- “हम इ बरद किनलहूँ अछि। एकर दाम अछि पोन सय। अदन्त अछि। बधिया अछि…..।” गोनू बाबू कनी रुकलाह, फेर बजैत भेलाह- “आब ऐ सं बेसी हमरा किछु नहि कहबाक अछि। तथा अहूँ सभसँ आग्रह जे फेर हमरा ऐ बरदक मादे किछु नहि टोकू, बस। एतबा कहैत ओ बरद खोललनि आ निकैल गेलाह। उपस्थिति लोक सभक कंटमे आयल बात मूहँमे आबि अंटकि गेलनि।
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